अध्यात्म और विज्ञान : विवेचनात्मक दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया
अध्यात्म वह ज्ञान ,वह शक्ति है जो सृष्टि के आदि से पहले, मध्य में और अंत के बाद भी रहने वाला है। जो ईश्वरीय है, वह अध्यात्मिक है। अध्यात्म ईश्वरीय सत्ता की विवेचना और उसके ज्ञान से भी ऊपर आनंद मार्ग है ।जो ज्ञान है ,जो अज्ञान है वही विज्ञान है क्योंकि वह हमेशा अपनी यात्रा को एक सीमा प्रदान करता है। पाने, खोजने, ढूंढने की लालसा ही तो विज्ञान है । अध्यात्म ज्ञान-अज्ञान से परे है ,खोजने-पाने की लालसा का अंत है।
विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ,चारों वेदों से ही समस्त उपनिषदों और शास्त्रों की उत्पत्ति हुई है ।समस्त चराचर जगत से संबंधित गूढ़ से गूढ़तम विषयों का ज्ञान इन वेदों में निहित है ।दुर्भाग्यवश यह समस्त ज्ञान जो हमारी सनातन संस्कृति में ,परंपरागत रूप से समाज और जीवन में स्वतः संप्रेषित थी ,वह आक्रांता ओं द्वारा लूट ली गई और जब विदेशों से किन्ही किन्ही सिद्धांतों के नाम से आने लगीं ,तो उसके ज्ञान ने हमें विज्ञानी बना दिया ।
अनंत शास्त्रों और विधाओं से भरपूर हमारे वेदों का ज्ञान ,प्रथम युग- सतयुग से ही ऋषि मुनियों द्वारा गुरुकुल में समभाव से, राजा हो या रंक, उनकी संतानों को समान रूप से दिया जात था। शरीर, मन ,आत्मा के संतुलन हेतु योग सिखाया जाता था ।अपनी मातृभूमि और संस्कृति के प्रति मस्तक तो क्या सदैव प्राण भी नतमस्तक होते थे ।जीवन में आत्मनिर्भरता हेतु समस्त विधाओं को अनेक शास्त्रों के नाम से उचित समय पर सिखाया जाता था। इन्हीं लुप्त विधाओं में से कुछ को यत्र -तत्र से एकत्रित कर अत्यंत प्राथमिक ज्ञान को ही विज्ञान नाम से पूरे संसार में सिरमौर बना दिया गया ।हम मानें या ना मानें हम शाश्वतरूपीय आध्यात्मिक हैं क्योंकि हम ईश्वरीय हैं। किंतु वैज्ञानिक होने के लिए हमें कुछ मानना तो पड़ता है, प्रमाण देना तो पड़ता है ।
विस्मयकारी तो तब होता है जब आज पूरा संसार विज्ञान के राग अलाप रहा है, तो यह क्यों नहीं पता चल पाता कि मनुष्य की औसत आयु इतनी सुविधा संपन्न होते हुए भी कम क्यों हो गई? कुछ लोग वातावरण, पर्यावरण, खानपान, प्रदूषण इत्यादि के नाम गिना सकते हैं ।तो क्या यह विज्ञान की देन नहीं है? चलो ठीक है, कोई ऐसा विज्ञान नहीं आ पाया जो मनचाही संतति दे सके औसत आयु 100 वर्ष की ।हां ,किंतु अध्यात्म इसे दे सकता है, वह भी बुद्धि, मेधा और प्रज्ञा के अतुल्य प्रकाश के साथ।
एक औसत सफल जीवन जीने के लिए महज हमारे सोलह संस्कार ही विज्ञान की हर atomic और molecular theory और principles of life को चुनौती देते हैं ।
विज्ञान ने जिन साधनों को तैयार किया है, उसने समाज को आलस्य प्रमाद से ही भरा है और उसकी आत्मनिर्भरता, परिष्करण ,आत्म, विवेचना, मानवीय मूल्यों का हरण कर लिया है ।हमने जीवन को सुंदर आत्मयात्रा से fast-forward life, रफ्तार की जिंदगी में बदल दिया है। मनुष्य के गुणों की तुलना उसके आत्म साक्षात्कार से, आत्मा की यात्रा के पथ पर बढ़ते कदम के स्थान पर, उसने कितना अर्थ संचय किया या कौन सा लौकिक पद पा लिया ,इससे होने लगी है। क्योंकि परम पद का ज्ञान विरासत में ही नहीं मिला है। मिला तो बस एक ज्ञान रफ्तार का, भागने दौड़ने का, आगे बढ़ने का, इस बात से अनभिज्ञ कि मार्ग कौन सा है?
वास्तव में जो हमारा प्राचीन विज्ञान है, जिसकी उत्पत्ति वेदों से हुई है, उससे हमारे पास उच्चतम तकनीक और दुर्गमता को सुगमता में बदलने के उत्कृष्टतम साधन थे ।किंतु आधुनिक विज्ञान ने मनुष्य को व्यक्ति में बदल डाला है ।हमारी यात्रा को दौड़ में, शांति को सफलता में, सुख को प्रमाद में, संतुष्टि को संचय में बदल दिया है। वास्तव में आध्यात्मिक विज्ञान में स्थूल और सूक्ष्म शरीर में भेद हैं, यद्यपि वह एक साथ ही रहते हैं। और हमारी सारी आत्मशक्ति इसी सूक्ष्म शरीर में निहित है ,जो जीवंत अवस्था में भी शरीर से निकलकर ब्रह्मांड की यात्रा करने में अत्यंत सक्षम है ।इसके अनेक प्रामाणिक तथ्य योगियों ने हमें विरासत में दिए हैं ।आधुनिक विज्ञान मृत शरीर को भी जीवन रक्षक प्रणाली तंत्र पर रखकर अर्थ संचय में विश्वास करता है और उसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है ।
जो पुरातन है, चिरंतन है, आदि मध्य और अंत से परे है, सत्य- सनातन है, जीवन में शांति कारक है, वही अध्यात्म है। जो नश्वर है, आदि मध्य और अंत से किसी भी रूप में संबंधित नहीं है, आत्मीय तत्वों से परे है ,वह विज्ञान है ।एक अलौकिक पारलौकिक है तो दूसरा लौकिक है। एक प्रेम ,शांति ,आनंद से परिपूर्ण यात्रा पथ है तो दूसरा खोजने पाने की होड़ है, अंतहीन दौड़ है।
-- क्लीं राय
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